क्या है मकरसंक्रांति को लगने वाले गेंद मेला का इतिहास

क्या है मकरसंक्रांति को लगने वाले गेंद मेला का इतिहास
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योगेश चौहान

कोटद्वार। दुनिया में यह खेल अकेला ऐसा खेल है जिसकों खेलने के लिए न समय की बाध्यता है ओर न ही खिलाड़ियों की निश्चित संख्या रोमांच ऐसा कि खेलने और देखने वालों के सिर चढ़कर बोलता है । जब तक हार जीत का फैसला नही होता खेल चलता रहता है । पौड़ी जिले के कई स्थानों पर एक ही दिन होने वाला यह गिंदी खेल मकर संक्रांति को खेला जाता । यमकेश्वर ब्लाक के थलनदी में , द्वारीखाल ब्लाक के डाडामंडी में कोटद्वार के मवाकोट और किशनपुरी में , सतपुली के बांघाट में , यमकेश्वर के कटघर , त्याडों आदि जगह पर गेंद मेले का आयोजन होता है । सभी जगह यह मेला मकर संक्रांति के दिन दो या उससे अधिक गांवों के लोगों के बीच होता है । हर जगह के गेंद मेले का स्वरूप एक जैसा ही होता है । सभी जगह के गेंद मेले का उद्गम थलनदी का गेंद मेला माना जाता है । यहां के गेंद मेला शुरू होने का स्पष्ट समय किसी को ज्ञात नहीं , दंत कथाओं में जरूर इसका जिक्र है । यमकेश्वर के थलनदी पर अजमीर और उदयपुर पट्टियों के बीच होने वाले मेले का आयोजन अजमीर उदयपुर गेंद मेला समिति थलनदी करवाती है । यह क्षेत्र थोकदारों का गढ़ रहा है । मान्यता है कि नाली गांव ( अजमीर ) की गिंदोरी नाम की लड़की का विवाह कस्याली गांव ( उदयपुर ) में हुआ था । पारिवारिक विवाद होने पर गिंदोरी घर छोड़कर ( थलनदी ) वर्तमान में थलनदी नामक स्थान पर आ गई । यह स्थान दोनों पट्टियों की सीमा में है । नदी के दोनों और गांवों के लोग खेतों में काम कर रहे थे । नाली गांव के लोगों को जब पता चला कि उनके गांव की लड़की ससुराल छोड़कर आ रही है तो उसे अपने साथ ले जाने लगे । कस्याली गांव के लोगों ने भी गिंदोरी को वापस ले जाने का प्रयास किया । दोनों गांवों के लोगो के बीच हुई छीना झपटी से गिंदोरी की मौत हो गई । दोनो पट्टियों के लोगों के बीच वर्चस्व के लिए हुए इस संघर्ष को बाद में गिंदोरी की याद में गिंदी कौथिग का आयोजन शुरू हुआ । खेल में किसी तरह का अनिष्ट न हो इसके लिए महाबगढ़ मंदिर का निशाण ( ध्वज ) साथ में चलता है , जिस कारण थलनदी गेंद मेले की मान्यता है और सभी मेलों का उद्गम थलनदी का गेंद मेला ही माना जाता है ।

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Dalip Kashyap

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