सीएम धामी की पहल से कम हुआ ग्रामीण महिलाओं का बोझ।
देहरादून:-असौज माह पहाड़ की महिलाओं के कंधों पर भारी बोझ लेकर आता रहा है। ग्रामीण इलाकों में असौज में घास काटने में सुबह से शाम तक महिलाएं पालतू मवेशियों के लिए सालभर की घास काटती हैं, घास काटने के बाद सुखाकर उसके लूट्टे लगाए जाते हैं। करीब दो माह तक महिलाएं व बेटियां धूप में घास काटती हैं तो इससे उनको अत्यधिक श्रम करना होता है। लेकिन इस बार घास काटने वाली मशीनों ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन को आसान बना दिया है तो काम का बोझ भी एक तिहाई हो गया है,
घास काटने की मशीन से बोझ हुआ कम
चम्पावत, लोहाघाट में ब्लॉक के माध्यम से महिलाओं को पता चला की समूहों को 90 प्रतिशत सब्सिडी में घास काटने की मशीन मिल रही है। जुलाई माह में उन्होंने उन पुरुषों के नाम से दो समुह बनाये जो भूमिधर किसान हैं। इसके बाद समूहों के माध्यम से घास काटने की मशीन खरीदी गई, सब्सिडी के बाद घास काटने की मशीन के लिए प्रति चार हजार तो ट्रेक्टर के लिए 15 से 19 हजार जमा कराए गए। मशीन मिलने के बाद घास कटाई शुरू हुई तो महिलाओं के काम का बोझ 25 प्रतिशत से भी कम रह गया, हाथ से चलाने वाली मशीन को पुरुष चलाने लगे तो एक दिन में 20 महिलाओं के बराबर घास कटने लगी। अब तक ग्राम पंचायत में 40 मशीनें क्रय हो चुकी हैं तो 5 ट्रेक्टर आ गए हैं।
एक लीटर पेट्रोल से 20 महिलाओं की बराबरी
घास काटने की मशीन एक लीटर पेट्रोल की कटाई से एक दिन में 200 से अधिक तक घास की पुले बन जाते हैं, जो 20 महिलाओं के बराबर श्रम है, गांव की महिलाएं बताती हैं की इस मशीन ने उनके काम का बोझ बेहद कम हो गया है। अब पुरुष ही घास काटते हैं उन्हें सिर्फ समेटना पड़ता है। जिन घरों में मशीन चलाने के लिए पुरूष नहीं हैं वहाँ आपसी सहभागिता से घास काटी जा रही है। इससे बंजर खेतों को भी आबाद करने का अवसर मिल गया है। जो पुरुष पहले कभी घास के खेतों तक नहीं जाते थे अब मशीन लेकर घास काटकर महिलाओं के काम को कर रहे हैं। गंगनौला के साथ ही पास के गांव भूमलाई, ईड़ाकोट, कोयाटी में भी घास काटने की मशीन ने कामकाजी महिलाओं के जीवन में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है।